ई-पुस्तकें >> नारी की व्यथा नारी की व्यथानवलपाल प्रभाकर
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मधुशाला की तर्ज पर नारी जीवन को बखानती रूबाईयाँ
नारी की व्यथा
(कविता संग्रह – रुबाइयां)
भूमिका
‘नारी की व्यथा‘ नामक यह पुस्तक श्री हरिवंश राय बच्चन जी की मधुशाला नामक पुस्तक की तर्ज पर लिखी गई है। इसमें 107 रूबाईयों के माध्यम से नारी के सम्पूर्ण जीवन का वर्णन किया गया है और अंत में छह रूबाईयों के माध्यम से नारी के प्रति हो रहे यौन शोषण के बारे में कहा है। एक नारी को माँ के पेट से लेकर या तो उसे आधे जीवन में ही मार दिया जाता है या फिर बूढ़ी होकर मरने तक जाने कितनी मुसीबतों का सामना करना पड़ता है। इस संसार में यदि कोई सुन्दर वस्तु है तो वह नारी ही है और यदि कोई बुरी चीज है तो वह भी नारी ही हैं। क्योंकि यहाँ पर नारी ही नारी की दुश्मन है। पुरूष प्रधान देश में नारी को सबसे ऊँचा दर्जा मिला है। शास्त्रों में तो यहाँ तक कहा गया है ‘यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवता‘ मगर आज नारी अपने इस ऊँचे दर्जे को स्वयं ही नीचा कर रही है। क्योंकि नारी खुद नारी को मार रही है। इसी पुस्तक के अन्त में एक रूबाई आई हैं जिसमें कहा गया है कि
यदि नारी मालकिन बने
तो नारी से नारी दुखी
यदि नारी नौकरानी बने
तो भी नारी से नारी दुखी।
दुखी है नारी, नारी से ही
जबकि पैदा होती नारी से नारी
नारी से पैदा हुई नारी हूँ
क्योंकि मैं इक नारी हूँ।
यदि हमारे समाज में कोई नारी ही ना रही तो फिर नारी का वजूद की क्या रह जायेगा। फिर नारी की सत्ता को मानने वाला समाज कहाँ रह जायेगा। नारी के बगैर देवता कहाँ से आयेंगें। यहाँ तो फिर ऐसा होगा जैसे बिना फुला का गुलशन।
इस पुस्तक में मैंने समाज की सभी बुराईयों को उठाने का प्रयास किया है। जैसे नारी भु्रण हत्या, दहेज प्रथा, नारी का समाज में दर्जा, नारी की नारी के प्रति विचारधारा और बुढ़ापे में बुजुर्गों की दशा आदि का वर्णन रूबाईयों के माध्यम से करने का प्रयास किया है। यदि नारी चाहे तो इस पूरे समाज को सुधार सकती है। ओर इस धरती को स्वर्ग बना सकती है। नारी इक फूल है जिसकी सुगन्ध समाज को सुगन्धित करती है। इसे केवल महसूस करना चाहिए। नोचना, खसोटना या तोड़ना नहीं चाहिए। जब तक नारी, नारी को नही पहचानेगी, समाज का उत्थान होना मुश्किल है। अतः अपनी शक्ति पहचानों। नारी को नारी तुम जानो।
इस समाज में नारी को केवल वासना की पूर्ति का एक साधन समझा जाता है। तभी तो इस समाज में आए दिन कहीं ना कहीं किसी चैराहे पर या किसी सुनसान जगह पर या फिर किसी भी घर में नारी के साथ दुष्कर्म जैसा जघन्य अपराध देखने को मिल जाता है। अब तो नारी का इस समाज में कहीं भी निर्भयता से घुमना दुस्वार हो गया है। उसकी इज्जत कहीं भी सुरक्षित नही है। जहाँ देंखें वहीं पर नोचने-खसोटने वाले भेडि़ये नजर आते हैं। आज औरत के लिए सरकार ने भले ही कानून बना दिये हों, मगर औरत अपनी इज्जत के लिए उन कानूनों का भी इस्तेमाल नही कर पाती। आज की जागरूक नारी भी यही सोचती है कि यदि उसने उसकी इज्जत लुटने वाली बात किसी को बताई तो समाज में उसकी कितनी बदनामी होगी। वह यह नही सोचती कि यदि उसने यह बात किसी को नही बताई तो उसकी इज्जत को तार-तार करने वाले युवक कल को किसी ओर की इज्जत को तार-तार कर देगें। या फिर उसके साथ ही अपना मुँह काला करते रहेंगे।
आज की पढ़ी लिखी औरत समाज को बदल सकती हैं। समाज में जीने का अधिकार सभी को बराबर का होना चाहिए। उसमें चाहे औरत हो या मर्द। एक औरत दूसरी औरत को भी अपने ही समान समझे। जब तक इस समाज में औरत, औरत को नही पहचानेगी, तब तक यूँ ही औरतं बदनाम होती रहेंगी। आज भी इस समाज में हमें देखने को मिलता है कि गाँवों में औरत का ही सिक्का चलता है। वह भी बूढ़ी औरत का। बूढ़ी औरत घर की मुखिया होती है। वह आने वाली बहू के साथ बड़े जुल्म करती है। अपनी बेटी या पोती से वह बहुत प्यार करती है। उसे बहू के हर काम में कोई न कोई नुक्श निकालने में बड़ा आनन्द आता है। कभी-कभार तो यही औरत घर में क्लेश का कारण भी बन जाती है। कुछ साल बाद फिर वह बहू सास के लिए खतरा बन जाती है। बुढ़ापे में सास की उतनी नही चलती जितनी उसने पहले चला ली। अब तो उसके लिए दो वक्त की रोटी भी उसकी बहू-बेटों के लिए भारी हो जाती हैं। अब वही बहू उसके साथ गिन-गिन कर बदला लेती है।
आज यदि देखा जाए तो आज का यह अधूरा फैशन ओर आज का माहौल भी समाज में लड़कियों के साथ होने वाले अत्याचारों को बढ़ावा दे रहा है। इस अधूरे फैशन ने लड़कियों की इज्जत का जैसे ढिंढोरा सा पिट रखा है। हम सब ये भी मानते है कि हर लड़की या औरत को अपने अनुसार जीने का हक है। मगर औरत को भी तो अपनी सीमा में ही रहना चाहिए। औरत को अपनी मान-मर्यादा का खुद ख्याल रखना होगा। औरत को चाहिए कि वो फैशन तो जरूर करें फैशन करना उसका जन्मसिद्ध अधिकार भी है। मगर अपनी सीमा में रहकर ही फैशन करें। मैने कई औरतों के मुँह से यहाँ तक सुना है कि यदि वो फैशन नही करेंगी तो उन्हें कोई नही देखेगा। कोई उनकी तारीफ नही करेगा। फैशन करने से बूढी औरत भी जवान दिखाई देने लगती है। आधे-अधूरे फैशन से औरत के प्रति आदमी का आकर्षण तो बढ जाता है, और यही आकर्षण औरत के जीवन में अँधेरा भर जाता है। आज इस समाज में फैशन के नाम पर जो नंगा नाँच हो रहा है। इसी ने औरतों की इज्जत को खतरे में डाल दिया है। प्राचीन काल में भारत को तपोभूमि के नाम से जाना जाता था। यहाँ पर लोग केवल बच्चे पैदा करने के लिए ही सैक्स किया करते थे। उस समय नारी भी अपने आप को सुरक्षित समझती थी। वीर्य को अमूल्य धातु समझा जाता था। पुरूष इसे बचाने में जी-जान लगा देते थे। अपने मन पर पूरा नियन्त्रण रखते थे। औरतों को कभी कामुक नजरों से देखते ही नही थे, क्योंकि उस समय औरते पर्दे में या फिर अपने तन को ढके रहती थी। मगर आज यदि देखा जाये चारों तरफ वही नंगा नाच। फिर कहाँ तक कोई पुरूष बचाये रखे, अपने आपको नारी से।
अतः अन्त में मैं इतना ही कहना चाहूँगा कि नारी को अपनी सीमा में रह कर ही फैशन आदि करने चाहिए। और पुरूषों को भी चाहिए कि वो समाज में रहकर नारी को समझे। नारी को समाज की सीमाएं नही लांघनी चाहिए। ओर पाश्चात्य अर्थात दूसरे देशों के फैशन को अपनी दिनचर्या में नही लाना चाहिए। हमारे देश का फैशन भी किसी देश के फैशन से कम नही हैं। हमारे देश का फैशन नारी को सुशील व सभ्य नारी होने को गौरव प्रदान करता है। मगर दूसरे देश का फैशन तो नारी को केवल सैक्स का ही साधन बना देता है। इसलिए मैं समाज की सभी औरतों से यही चाहूँगा कि वो इस आधे-अधूरे फैशन को त्याग कर भारतीय फैशन के रंग में रंग जायें।
इस समाज में फैली हर कुरीति को नारी ही खत्म कर सकती है। आदमी तो नारी के दिखाये रास्ते पर चलता है ओर अपनी मंजिल को प्राप्त कर लेता है। किसी भी कामयाब पुरूष के पिछे औरत का हाथ होता है। करने वाला तो पुरूष ही होता है। मगर उससे पुछा जाये तो वह यही कहेगा कि उसके पिछे उसकी माँ, बहन, पत्नी, या प्रेमिका का हाथ है। आखिरकार एक कामयाब आदमी किसने बनाया एक औरत ने ही। अन्त में हम कह सकते हैं कि इस समाज की नींव औरत ही है। यदि औरत ही नहीं होगी तो समाज कहाँ से पैदा होगा। अतः नारी तुम जागो और अपनी शक्ति को पहचानो, उठाओ अपने हथियार और इस समाज की बुराईयों को जड़ से मिटा दो।
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